- स्मृति आदित्य
'घुमक्कड़ी' एक किताब नहीं नशा है और नशा भी ठीक वैसा ही जैसा घुमक्कड़ी में होता है। मनीषा कुलश्रेष्ठ का यात्रा संस्मरण 'घुमक्कड़ी- अंग्रेज़ी साहित्य के गलियारों में' जब उठाया तो पिछले पाठकीय अनुभवों के आधार पर मानस को तैयार कर ही लिया था कि इसमें है कुछ ख़ास और य$कीनन मनीषा जी की लेखनी ने मानस को वही असीम तृप्ति दी जिसकी आशा बँधी थी। यह किताब सिर्फ यात्रा संस्मरण नहीं है यह एक संवेदनशील मन के साथ शेक्सपियर, वर्ड्सवर्थ, कीट्स, कॉलरिज, जेन आस्टेन जैसे कई कलमकारों को मन की गहराइयों से अभिस्पर्श करने का सुअवसर और सौभाग्य देती है।
जिस तन्मयता से इस किताब को लिखा गया है मेरे पाठक-मन ने उसी तल्लीनता से उसे पढ़ा और कहने से बच नहीं सकूँगी कि नशा अब भी तारी है... और मैं उसे दुबारा पढ़ रही हूँ उसी मनोयोग के साथ।
मनीषा कुलश्रेष्ठ की पूर्व प्रकाशित किताब 'होना अतिथि कैलाश का' पढ़कर मुझे कई दिनों तक कैलाश मानसरोवर के सपने आए और इस किताब के बाद मैं य$कीन से कह सकती हूँ कि अब अंग्रेज़ी साहित्य के गलियारों में मेरा मन अटकता-भटकता रहेगा।
किताब की सबसे आकर्षक बात है मनीषा कुलश्रेष्ठ के कहन की सम्मोहित कर देने वाली जीवंत शैली। यूँ लगता है जैसे जो वे अनुभूत कर रही हैं वह सब हमारे भीतर पर्त दर पर्त उतर रहा है। और हर वह मशहूर किरदार आपको उसी तरह रोमांचित करता है जैसे रचनाकार ने महसूस करते हुए और फिर शब्दों में बाँधकर हम तक पहुँचाते हुए किया होगा।
अगर आपने अंग्रेज़ी साहित्य को पढ़ा है तो निश्चित रूप से कल्पना में आपने उन रचनाकारों की जीवनशैली को उकेरा होगा, यह किताब उसी कल्पना को सुंदरता और सहजता से साकार करती है और सार्थक रंग भी देती है।
सुध-बुध खोकर आप लेखिका के साथ-साथ चलते हैं, थकते हैं, रुकते हैं, दौड़ते हैं, मुस्कुराते हैं, भीगते हैं। यही तो यात्रा संस्मरण की सफलता है कि आप आप नहीं रहते हैं आप जादू भरी अनोखी दुनिया में किताब के माध्यम से प्रवेश कर जाते हैं। जब आप कीट्स के घर में होते हैं तो आपको उनकी पंक्तियाँ धुँधली सी याद आती हैं और चमत्कार तो तब होता है कि वही पंक्तियाँ अगले पेज (पेज 52) पर आपको छपी हुई मिलती है।
मनीषा कुलश्रेष्ठ इसमें लिखती हैं- मैं उत्साह से भरी हुई थी और मिलने विषाद से आई थी। कीट्स हाउस आकर यह तो तय था लौटना उदास होगा। एक युवा कवि जो अपना बेहतरीन लिखकर अपने वतन से दूर इटली में एक शांत सीले घर में, उस ज़माने की घातक बीमारी ट्यूबरक्यूलोसिस से जूझता हुआ महज 25 साल की उम्र में उस चहल पहल को छोड़कर चला गया जो उसके होने से थी।
मनीषा सिर्फ उन विशिष्ट जगहों पर जाकर हमें वहाँ की ख़ुशबू से सराबोर ही नहीं करती बल्कि वे संबंधित सवाल भी उठाती हैं और जवाब भी खोजती हैं। वे कोरी भावुकता से बचकर अपने स्तर पर विमर्श भी करती हैं, सोच को उद्वेलित करती हैं तो कभी अपनी पलकों की कोर से छलकी बूँद से हमारी मन धरा को सींच जाती हैं...
डिकेंस और कैथरीन के रिश्तों का गणित उन्हें बेचैन कर देता है-
''डिकेंस ने दावा किया कि कैथरीन बाद में एक अक्षम माँ और गृहणी बन गई थी और 10 बच्चे भी उनकी जि़द का नतीजा थे...
वे अपनी डिकेंस के प्रति सम्मान की भावना को $कायम रखते हुए भी सवाल कर उठती है.. इतने बरसों घर सहेजने वाली कैथरीन अचानक अक्षम गृहणी कैसे हो गई? क्या बच्चे एकतर$फा जि़द से होते हैं? एक महान लेखक के कितने मूर्खतापूर्ण आरोप थे!''
इस किताब की महीन कारीगरी आपको उलझाती नहीं बल्कि रेशों-रेशों की कोमलता से अवगत कराती है। चाहे आर्थर कौनन डायल के गढ़े किरदार शरलॉक होम्स हों या टाइटैनिक का मार्मिक यथार्थ.. मनीषा की कलम उन्हें इस ख़ूबी से पाठक के सामने लाती है कि उनके अपने विचारों के नन्हे अंकुरण भी लहलहाते रहें और आँखों देखे जो स्निध फूल उन्होंने सँजोये हैं उनकी दृश्यावली भी घूमती रहे।
इस किताब के माध्यम से लेखिका ने यात्राओं के ज़रिए अपने प्रिय विदेशी लेखकों-शख्सियतों को $करीब से देखने-जानने और महसूस करने का जो अनुभव सहेजा है उसे कई गुना ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त भी किया है। अनुभूतियाँ अक्सर अभिव्यक्ति की पगडंडियों में अर्थ बदल देती हैं लेकिन यह किताब इस मायने में श्रेष्ठ कही जाएगी कि यहाँ अभिव्यक्ति ने व्यक्ति, विचार और वस्तुओं के अर्थों को पूरी प्रामाणिकता, भावप्रवणता और प्रभावोत्पादकता से प्रस्तुत किया है।
किताब की कई अच्छी बातों में एक यह भी कि चित्रों को अंतिम पृष्ठों पर स्थान दिया है ताकि पढ़ने की तंद्रा न टूटे और कल्पना के शिखर अंतिम पायदान पर दमकते हुए साकार हों। चाहे फिर वह फ्रायड का म्यूजि़यम हो, बैठे हुए ऑस्कर वाइल्ड हो, शेक्सपियर का स्मारक हो या फिर स्टोन हैंज में खोया जामुनी म$फलर ही क्यों न हो। शिवना प्रकाशन से आई इस कृति का पढ़ कर पाठक कुछ समय के लिए किसी दूसरी दुनिया में खो जाता है। या एक बिलकुल नया तरी$का है यात्रा संस्मरण लिखने का, जिसमें यात्रा संस्मरण के बहाने स्त्री-विमर्श जैसे सरोकार पर पूरी मज़बूती से मनीषा कुलश्रेष्ठ न केवल अपना पक्ष रखती हैं बल्कि उसके सूत्र भी उन स्थानों पर तलाशते हुए चलती हैं। इस कारण यह केवल यात्रा वृत्तांत न रह कर स्त्री विमर्श का एक दस्तावेज़ बन जाता है। शिवना प्रकाशन ने इस किताब को बहुत ख़ूबसूरती के साथ प्रकाशित किया है। एक आवश्यक किताब है यह।